प्राचीन काल से ही रत्नों को उनकी सुंदरता के साथ-साथ उनके विशिष्ट ज्योतिषीय तथा स्वास्थ्य लाभों के लिए भी पहना जाता रहा है। इन दुर्लभ रत्नों को मिस्र, यूनान, भारत और चीन सहित कई देशों के लोगों द्वारा द्वारा ब्रह्मांडीय ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि रत्न समृद्धि ला सकते हैं, आत्म-सम्मान बढ़ा सकते हैं, और पहनने वाले व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं से भी बचा सकते हैं।

रत्नों की आंतरिक ऊर्जा पहनने वाले के शारीरिक संपर्क में आते ही उनके आभामंडल(aura) तथा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण को प्रभावित करती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक रत्न किसी खास ग्रह से जुड़ा हुआ है और कुंडली में मौजूद दोषों का उपचार करने में सहायक है। उदाहरण के लिए, पुखराज रत्न बृहस्पति के ग्रह प्रभाव को बढ़ाता है और ज्ञान तथा वित्तीय विकास में सहायक है।

हालाँकि, रत्नों के उपचार गुण पूर्ण तरीके से तभी सक्रिय होते हैं जब धारण करने से पूर्व उनका विधिवत पूजन किया जाए । इस प्रक्रिया को सक्रियकरण (Energization) या प्राण प्रतिष्ठा के नाम से भी पुकारा जाता है। बिना सक्रियकरण किया गया रत्न पहनने से धारक को रत्न के पूरे ज्योतिषीय लाभ मिलते हैं। यह पूजन रत्नों के खनन, काटने तथा चमकाने के दौरान उनमे व्याप्त होने वाली नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने में मदद करता है। इस प्रक्रिया में रत्नों को पंचामृत में भिगोना, वैदिक मंत्रों का जाप और गंगा जल से धोना इत्यादि कदम शामिल हैं।

रत्न कैसे काम करते हैं? (ratan kaise kam karta hai)

रत्नों का निर्माण पृथ्वी की सतह के नीचे लाखों वर्षों में तीव्र गर्मी और दबाव के कारण होता है। इनमें से कुछ रत्न पृथ्वी पर गिरे उल्कापिंडों के कारण बाह्य अंतरिक्ष से भी आये हैं। निर्माण की ये प्राकृतिक प्रक्रियाएँ रत्नों में कुछ अद्भुत आवृत्तियाँ और तथा चमत्कारिक गुण उत्पन्न करती हैं। जब इन रत्नों को त्वचा पर पहना जाता है, तो प्रकाश की किरण रत्नों से होकर गुजरती है रत्न के प्रभावों को पहनने वाले के शरीर में पहुंचाती हैं। इससे धारक के शरीर में कुछ खास रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न होते हैं, जिनसे अच्छा स्वास्थ्य तथा सकारात्मकता प्राप्त होती है।

रत्नों के लिए पूजा या प्राण प्रतिष्ठा क्यों आवश्यक है? (ratno ki pooja or pran pratishtha kyu jaruri hoti hai)

जैसा कि हम सभी जानते हैं, रत्न कच्चे रूप में खदानों से निकलते हैं। इसलिए, इन्हें उचित कटिंग और पॉलिशिंग के बिना नहीं पहना जा सकता है। इन प्रक्रियाओं के दौरान, प्राकृतिक रत्न कई हाथों और वातावरण से गुजरते हैं, जिससे नकारात्मक ऊर्जा और गंदगी जमा हो जाती है। एक वैदिक पूजा रत्न को शुद्ध करती है, उसकी मूल कंपन शक्ति को बढाती है।

प्राण प्रतिष्ठा समारोह रत्न की प्राकृतिक ऊर्जा जागृत हो जाती है जिससे धारक को आध्यात्मिक और ज्योतिषीय लाभ प्राप्त होते हैं।

रत्न सिद्धि हेतु पूजा के प्रकार

रत्नों को सक्रिय करने के लिए विभिन्न प्रकार की पूजा प्रक्रियाएं की जाती हैं, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया हैः

  • मूल पूजा - यह वैदिक पूजा का सरल रूप है। इस पूजा प्रक्रिया को सामान्यतः रत्न विक्रेताओं के द्वारा करवाया जाता है। जब कोई खुदरा विक्रेता बिक्री के लिए अपनी सूची में नई चीजें जोड़ता है, तो देवता की पूजा करने की प्रथा है। इस पूजा को रत्न में मौजूद किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाने के लिए वैदिक पूजा सामग्री की मदद से किया जाता है। इस पूजा को करने के दौरान उपासक को रत्न से संबंधित ग्रह के सम्मान में दीया जलाना चाहिए और मंत्र का जाप करना चाहिए । मूल पूजा एक सामान्यअनुष्ठान है जिसमें किसी मूर्ति या छवि के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है।
  • वैदिक पूजा - वैदिक पूजा एक मध्य-स्तरीय पूजा है जिसमें जन्मकालीन ग्रहों को रत्नों के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। इस पूजा को सामान्यत किसी विशेषज्ञ पंडित के द्वारा किया जाता है। इस पूजा के दौरान विशेष वैदिक मंत्रों का जाप किया जाता है जिससे रत्नों की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और उनमें सकारात्मकता का संचार होता है।
  • प्राण प्रतिष्ठा - यह पूजा रत्नों में मौजूद दिव्य ऊर्जा का आह्वान करने के लिए पुजारियों द्वारा किया जाने वाला सबसे ऊंचे दर्जे का अनुष्ठान है। प्राण प्रतिष्ठा आम तौर पर ऐसे पुजारियों द्वारा की जाती है जिन्हें चारों वेदों का अच्छा ज्ञान होता है। प्राण प्रतिष्ठा पूजा में 16 पारंपरिक अनुष्ठान शामिल हैं जिनका उपयोग रत्न से संबंधित ग्रह के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करने के लिए किया जाता है। इस अनुष्ठान का प्रारंभ देवताओं को प्यार से बुलाने और और समापन उन्हें उनके निवास स्थान पर वापस भेजने से होता है।

प्राण प्रतिष्ठा क्या है? (pran pratishtha kya hoti hai)

प्राण प्रतिष्ठा शब्द का अर्थ है "जीवन शक्ति का संचार"। इस पूजन विधि के दौरान रत्नों में मौजूद दिव्य ऊर्जाओं का आह्वान किया जाता है, जिससे ये आध्यात्मिक और ज्योतिषीय शक्ति का स्रोत बन जाते हैं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह आम तौर पर विशेषज्ञ पुजारियों द्वारा किया जाता है, हालांकि इस पूजा को पहनने वाले व्यक्ति खुद अपने घर पर भी कर सकते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, रत्न से संबंधित ग्रह की ऊर्जा को जागृत करने के लिए कई तरह के वैदिक मंत्रों का पाठ किया जाता है।

प्राण प्रतिष्ठा क्यों महत्वपूर्ण है? (pran pratishtha kyu jaruri hota hai)

वैदिक परंपराओं में, रत्न केवल सजावटी सामग्री नहीं हैं, ऐसा माना जाता है किउनके भीतर विभिन्न ज्योतिषीय ग्रहों की शक्ति समाहित होती है। अत: रत्नों का संपूर्ण ज्योतिषीय लाभ प्राप्त करने के लिए प्राण प्रतिष्ठा करना आवश्यक है। प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से, रत्न एक शक्तिशाली ताबीज में बदल जाता है जो पहनने वाले व्यक्ति को आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय लाभ प्रदान करता है।

प्राण प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक विवरण कौन से हैं? (pran pratishtha ke liye jaruri vivaran)

वैयक्तिकृत ऊर्जाकरण अनुष्ठान के लिए निम्नलिखित विवरणों की आवश्यकता होती है:

  • पहनने वाले का पूरा नाम
  • जन्म तिथि, समय और स्थान
  • लिंग
  • कुल/गोत्र (यदि ज्ञात हो)
  • रत्न धारण करने का उद्देश्य

प्राण प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक वस्तुएँ (pran pratishtha ke liye jaruri saman)

उपर्युक्त पूजा प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए,अनुष्ठानकर्ता के पास निम्नलिखित उत्पाद होने चाहिए:

  • एक धातु का बर्तन
  • बिना उबाला हुआ गाय का दूध
  • पवित्र तुलसी (तुलसी के पत्ते)
  • शहद
  • घी
  • गंगा जल (या शुद्ध जल)
  • एक साफ कपड़ा
  • एक कपड़ा (रखने के लिए)
  • ताजे फूल और धूप
  • चंदन
  • पूजा की थाली

रत्न में प्राण प्रतिष्ठा कैसे करें? (ratna ki pran pratishtha kaise kare)

रत्न की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए, आपको पूजा प्रक्रिया के इन चरणों का पालन करना होगा:

रत्नों का शुद्धिकरण

  • सबसे पहले रत्न को गंगा जल से धो लें
  • अब रत्न को शुद्ध करने के लिए उसे पंचामृत के मिश्रण में 10 से 20 मिनट तक डुबोकर रखें।
  • इसके पश्चात् रत्न को ताजे पानी या गंगा जल से पुनः धो लें।
  • इसे साफ कपड़े से धीरे-धीरे सुखाएं।

पूजा के लिए रत्न स्थापित करना

  • रत्न को किसी पवित्र स्थान पर साफ कपड़े पर रखें।
  • अब रत्न के चारों ओर कुछ ताजे फूल छिड़कें और अगरबत्ती जला लें।
  • दैवीय आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु दीया जलाएं।

मंत्र जाप

  • रत्न को सक्रिय करने हेतु उससे संबंधित ग्रह से जुड़े हुए मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • एक बार पूरा हो जाने पर, ज्योतिषीय मार्गदर्शन के अनुसार, रत्न अंगूठी या पेंडेंट में सेट करने के लिए तैयार है।

रत्नों को किस उंगली पर पहनना चाहिए? (ratno ko kis ungli me lagana chahiye)

प्रत्येक उंगली विशिष्ट ग्रहीय ऊर्जाओं से जुड़ी होती है। सही उंगली पर रत्न पहनने से उनकी प्रभावशीलता बढ़ जाती है:

  • तर्जनी (बृहस्पति) - पुखराज(नेतृत्व, बुद्धि)
  • मध्यमा उंगली (शनि) - नीलम, हीरा, गोमेद, लहसुनिया (संतुलन, जिम्मेदारी)
  • अनामिका (सूर्य)- माणिक्य, मूंगा (प्रेम, आत्मविश्वास)
  • छोटी उंगली (बुध और चंद्रमा)- पन्ना, मोती (संचार, रिश्ते)

वैदिक पूजा और प्राण प्रतिष्ठा के लिए क्या करें और क्या न करें

वैदिक पूजा और प्राण प्रतिष्ठा करने से पूर्व अनुष्ठानकर्ता को निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिएः

क्या करें:

  • पूजा करने से पहले विधिवत स्नान करें।
  • रत्न धारण करने से पहले अनुशंसित मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • प्रत्येक रत्न को पहनने के लिए सही दिन और समय का पालन करें।

क्या न करें:

  • अनुष्ठान से पहले या बाद में मांसाहारी भोजन का सेवन करना।
  • किसी ज्योतिषी की सलाह के बिना रत्न धारण करें।
  • प्रामाणिकता प्रमाणन के बिना रत्न खरीदें।

रत्नों की वैदिक पूजा करने का सर्वोत्तम तरीका

हालाँकि, प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया घर पर की जा सकती है, लेकिन प्रभावी सक्रियण के लिए, यह सुझाव दिया जाता है कि आप किसी विशेषज्ञ पुजारी की सेवा लें, क्योंकि रत्न के उचित आध्यात्मिक, स्वास्थ्य और ज्योतिषीय लाभ प्राप्त करने के लिए रत्न से जुड़े मंत्रों का सही उच्चारण करना अनिवार्य है।

निष्कर्ष:

रत्न केवल आभूषणों की सुंदरता ही नहीं बढ़ाते बल्कि ये धारक को कई प्रकार के ज्योतिषीय लाभ भी प्रदान करते हैं। हालांकि रत्नों के पूर्ण ज्योतिषीय प्रभाव प्राप्त करने हेतु उनका विधिपूर्वक पूजन एवं प्राण प्रतिष्ठा अवश्य करनी चाहिए।प्राण प्रतिष्ठा से आपको रत्नों को धारण करने के पूर्ण ज्योतिषीय तथा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होंगे।


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